देश में धान की खेती की शुरुआत मानसून की शुरुआत से ही शुरू हो जाती है. यह खरीफ सीजन की मुख्य फसलों में से एक है. हर वर्ष किसान नई - नई किस्मों के बीज का इस्तमाल करके फसल की पैदावार बढ़ाने की कोशिश कर रहे है.
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लेकिन क्या आपके ज़हन में कभी ये सवाल आया की पहले के लोग आखिर कैसे धान की किस्मों की खेती करते होंगे. आखिर कौन सी किस्में थी जो कि लुप्त हो चुकी है. आखिर पुराने जमाने के लोग ज्यादा शक्तिशाली और अभी के मुकाबले ज्यादा देर तक क्यों जिंदा रहते थे. अवश्य ही वे लोग अच्छा पोषक तत्वों से भरपूर खाना खाते होंगे और व्यायाम करते थे. आज के समय वो सब लुप्त हो रहा है. उस समय के धान में पोषक तत्वों की मात्रा अच्छी होती थी. लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, ज्यादा उत्पादन के लिए किसानों ने उन्नत किस्म की धान की खेती करना शुरू कर दी.
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परंतु एक इकोलॉजिकल साइंटिस्ट जिनका नाम देबल देब (Debal Deb) है, वो पुरानी किस्मों को खेतों में लाने का कार्य कर रहे है. इसकी शुरुआत 1991 में दक्षिणी बंगाल में हुई थी. जहां पर देबल देब ने देखा कि एक आदिवासी किसान की गर्भवती पत्नी उबले हुए भुटमुड़ी चावल के माड़ को पी रही थी. क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि भुटमुड़ी चावल के माड़ को पीने से एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी ठीक हो जाती है. यह देखने के बाद देबल देब इसके बारे में जानने की इच्छा हुई. जिसके बाद देबल देब ने इसके बारे में जानने दुर्लभ, स्वदेशी चावलों पर शोध करना शुरू किया. फिर उन्होंने कुछ किसानों के साथ मिलकर इस प्रकार के दुर्लभ और मूल्यवान चावलो की किस्मों को इक्कठा करना शुरू किया और साथ ही इनकी खेती करना इनका लक्ष्य था.
1994 में इन्होंने जीवित देशी किस्मों पर सर्वेक्षण करना शुरू किया. 2001 में इन्होंने बसुधा फार्म की स्थापना की और 2006 में इनका शोध आखिर कार पूरा हुआ. इन्हे पता चला कि 1970 तक भारत में चावल के लगभग 1,10,000 से अधिक विभिन्न किस्में थी. परंतु उनके शोध के बाद 90 प्रतिशत किस्में गायब हो चुकी थी. इन्होंने सरकार और कई निजी संस्थानों से मदद मांगने की कोशिश की परंतु किसी ने उनकी मदद नहीं की.
धान बीज बैंक के बारे में जानकारी
जब देबल देब को कही से भी सहायता नहीं मिली, तब उन्होंने इस कार्य को पूरा करने के लिए ओडिशा में धान बीज बैंक की स्थापना की. इस बैंक से कोई भी किसान चावल की पुरानी किस्म को देकर कोई भी देसी किस्म मुफ्त में ले सकता है. धान बैंक के पास कई प्रकार की किस्म है और साथ ही दुनिया का एकमात्र ऐसे चावल की किस्म जिसमे की चांदी के अंश भी पाए जाते है. 15 ऐसी प्रजातियां जो की समुद्र के पानी में भी उग सकते है. 12 ऐसी प्रजातियां जो की सूखे में भी उग सकती है. इसलिए देबल देब को 'राइस वारियर ऑफ़ इंडिया' और 'सीड वारियर' के रूप में भी जाना जाता है।