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मुफ्त में देसी बीज

मध्यप्रदेश के केदार बाँट चुके हैं 17 राज्यों के हजारों लोगों को मुफ्त में देसी बीज

मध्यप्रदेश के केदार बाँट चुके हैं 17 राज्यों के हजारों लोगों को मुफ्त में देसी बीज

140 से ज्यादा किस्मों के देसी बीज बांट दिए हैं अब तक

ग्वालियर। मध्यप्रदेश के रहने वाले 44 वर्षीय किसान केदार सैनी, देश में 17 राज्यों के हजारों लोगों को मुफ्त में बीज बांट चुके हैं। वह देसी बीज लोगों तक पहुंचाकर देश और शहर में हरियाली फैलाना चाहते हैं। वह अब तक 140 से ज्यादा किस्मों के देसी बीज लोगों में बांट चुके हैं। गुना जिले के रुठियाई गांव के केदार सैनी 2019 से गेल इंडिया और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे प्रोजेक्ट्स पर पौधे लगाने का काम भी कर चुके हैं। केदार अब तक देश के 17 राज्यों में अलग-अलग किसानों को डाक के जरिए देसी सब्जियों और
औषधीय पौधों के बीच पहुंचा चुके हैं। उनका कहना है कि वह बीज बांटने का काम सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी देसी भोजन पर ध्यान दे। देसी किस्मों के बीज कई सालों तक सुरक्षित रहते हैं।

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केदार सैनी के बारे में

- जैसा कि हमने बताया कि केदार सैनी मध्यप्रदेश के गुना जिले के रुठियाई गांव रहने वाले हैं। केदार सैनी ने हिंदी विषय से एमए किया है। उनके पिताजी के जाने के बाद उनकी माँ के नाम पर केवल चार बीघा जमीन आई। शुरुआत में केदार ने अपनी जमीन के साथ-साथ दूसरों की जमीन भी किराए पर लेकर खेती-किसानी की। केदार पारंपरिक खेती से ज्यादा बागवानी में ज्यादा रुचि रखते हैं। वो हमेशा अलग किस्म की सब्जियां उगाते हैं। केदार को देसी किस्मों के बीज इकट्ठा करना अच्छा लगता है। बारिश के मौसम में तो वह इन देसी बीजों को बेच भी देते हैं। केदार कक्षा 7वीं से बीज इकट्ठा करके बेचने का काम करते हैं। उनकी जेब में हमेशा बीज रखे मिलते हैं। केदार फिलहाल इंदौर में प्रधानमंत्री निवास योजना के तहत बन रहे प्रोजेक्ट में पौधे लगाने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा वह समृद्धि पर्यावरण संरक्षण अभियान के तहत एक मिशन भी चला रहे हैं।

कोरोना महामारी में डाक से भेजे थे देसी बीज

- केदार सैनी ने वैश्विक कोरोना महामारी के समय जरूरतमंद लोगों को डाक से देसी बीज भेजे थे। उन्होंने इन बीजों को पिछले 7 सालों में इकट्ठा किया था। और सभी को मुफ्त में डाक से भेजे थे। केवल डाक शुल्क ही लिया था।

बचपन से ही पौधों के प्रति लगाव रखते हैं केदार

- केदार सैनी बचपन से ही पौधों के प्रति लगाव रखते हैं। वह दुर्लभ जड़ी-बूटियों, फलों एवं दुर्लभ सब्जियों आदि के बीज इकट्ठा करते हैं और जरूरतमंद लोगों तक इन्हें पहुंचाते हैं। ----- लोकेन्द्र नरवार
एक शख्स जो धान की देसी किस्मों को दे रहा बढ़ावा, किसानों को दे रहा मुफ्त में देसी बीज

एक शख्स जो धान की देसी किस्मों को दे रहा बढ़ावा, किसानों को दे रहा मुफ्त में देसी बीज

देश में धान की खेती की शुरुआत मानसून की शुरुआत से ही शुरू हो जाती है. यह खरीफ सीजन की मुख्य फसलों में से एक है. हर वर्ष किसान नई - नई किस्मों के बीज का इस्तमाल करके फसल की पैदावार बढ़ाने की कोशिश कर रहे है.

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लेकिन क्या आपके ज़हन में कभी ये सवाल आया की पहले के लोग आखिर कैसे धान की किस्मों की खेती करते होंगे. आखिर कौन सी किस्में थी जो कि लुप्त हो चुकी है. आखिर पुराने जमाने के लोग ज्यादा शक्तिशाली और अभी के मुकाबले ज्यादा देर तक क्यों जिंदा रहते थे. अवश्य ही वे लोग अच्छा पोषक तत्वों से भरपूर खाना खाते होंगे और व्यायाम करते थे. आज के समय वो सब लुप्त हो रहा है. उस समय के धान में पोषक तत्वों की मात्रा अच्छी होती थी. लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, ज्यादा उत्पादन के लिए किसानों ने उन्नत किस्म की धान की खेती करना शुरू कर दी.

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परंतु एक इकोलॉजिकल साइंटिस्ट जिनका नाम देबल देब (Debal Deb) है, वो पुरानी किस्मों को खेतों में लाने का कार्य कर रहे है. इसकी शुरुआत 1991 में दक्षिणी बंगाल में हुई थी. जहां पर देबल देब ने देखा कि एक आदिवासी किसान की गर्भवती पत्नी उबले हुए भुटमुड़ी चावल के माड़ को पी रही थी. क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि भुटमुड़ी चावल के माड़ को पीने से एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी ठीक हो जाती है. यह देखने के बाद देबल देब इसके बारे में जानने की इच्छा हुई. जिसके बाद देबल देब ने इसके बारे में जानने दुर्लभ, स्वदेशी चावलों पर शोध करना शुरू किया. फिर उन्होंने कुछ किसानों के साथ मिलकर इस प्रकार के दुर्लभ और मूल्यवान चावलो की किस्मों को इक्कठा करना शुरू किया और साथ ही इनकी खेती करना इनका लक्ष्य था. 1994 में इन्होंने जीवित देशी किस्मों पर सर्वेक्षण करना शुरू किया. 2001 में इन्होंने बसुधा फार्म की स्थापना की और 2006 में इनका शोध आखिर कार पूरा हुआ. इन्हे पता चला कि 1970 तक भारत में चावल के लगभग 1,10,000 से अधिक विभिन्न किस्में थी. परंतु उनके शोध के बाद 90 प्रतिशत किस्में गायब हो चुकी थी. इन्होंने सरकार और कई निजी संस्थानों से मदद मांगने की कोशिश की परंतु किसी ने उनकी मदद नहीं की.

धान बीज बैंक के बारे में जानकारी

जब देबल देब को कही से भी सहायता नहीं मिली, तब उन्होंने इस कार्य को पूरा करने के लिए ओडिशा में धान बीज बैंक की स्थापना की. इस बैंक से कोई भी किसान चावल की पुरानी किस्म को देकर कोई भी देसी किस्म मुफ्त में ले सकता है. धान बैंक के पास कई प्रकार की किस्म है और साथ ही दुनिया का एकमात्र ऐसे चावल की किस्म जिसमे की चांदी के अंश भी पाए जाते है. 15 ऐसी प्रजातियां जो की समुद्र के पानी में भी उग सकते है. 12 ऐसी प्रजातियां जो की सूखे में भी उग सकती है. इसलिए देबल देब को 'राइस वारियर ऑफ़ इंडिया' और 'सीड वारियर' के रूप में भी जाना जाता है।